सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
खुलेगा पस-ए-मर्ग एहसान क्या था
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नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा
मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ
रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है
देहली का इक रईस ब-हंगाम-ए-जाँ-कनी
दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
जो ले के उन की तमन्ना के ख़्वाब निकलेगा
जब कोई जुगनू चमकता है अँधेरी रात में
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो