रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी
सो जाएँगे इक रोज़ ज़मीं ओढ़ के हम भी
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मुफ़्लिसी और इस में घर पर हम-नशीनों का हुजूम
जीने के लिए जो मर रहे हैं
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
हम चटानें हैं कोई रेत के साहिल तो नहीं
और कुछ देर सितारो ठहरो
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
अब कहो कारवाँ किधर को चले
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
किसे ख़बर थी कि ये दौर-ए-ख़ुद-ग़रज़ इक दिन
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो