देहली का इक रईस ब-हंगाम-ए-जाँ-कनी
सर धुन रहा था चारागरों में घिरा हुआ
जैसे फ़ुसूँ-गरों के झमेले में नीम-शब
खेले सियाह नाग का ताज़ा डसा हुआ
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(765) Peoples Rate This
अब कहो कारवाँ किधर को चले
रात है बरसात है मस्जिद में रौशन है चराग़
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर
कौन देता है मोहब्बत को परस्तिश का मक़ाम
कुछ अपने साज़-ए-नफ़स की न क़द्र की तू ने
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं