चूम कर उस बुत की पेशानी को पछताना पड़ा
खिंच गया मेरे लब-ए-लाल-ए-मोहब्बत से असल
जिस तरह इस्याँ-शिआरों की सियहकारी के ब'अद
खोखली साबित हुआ करती है तामीर-ए-अमल
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हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
कौन देता है मोहब्बत को परस्तिश का मक़ाम
मुफ़्लिसी के वक़्त अक्सर इशरत-ए-रफ़्ता की याद
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब