भूरे भूरे बादलों से आसमाँ लबरेज़ है
इस तरह ज़ौ-पाश है रह रह के माह-ए-सीम-फ़ाम
जैसे साहिल की बुलंदी से भरी बरसात में
गदले पानी में हसीं मछली का अंदाज़-ए-ख़िराम
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(873) Peoples Rate This
न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है
रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो कर
आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
हंगामा-ए-ख़ुदी से तू बे-नियाज़ हो जा
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
कौन देता है मोहब्बत को परस्तिश का मक़ाम
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार
अब कहो कारवाँ किधर को चले