गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
इक दिया दूर टिमटिमाता है
जैसे इक पुर-ख़ुलूस इंसाँ का
मुश्किलों में ख़याल आता है
Gulzar
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दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
और कुछ देर सितारो ठहरो