मौत ही एक दवा है और वो जारी है

मौत ही एक दवा है और वो जारी है

हम को ज़िंदा रहने की बीमारी है

सिर्फ़ उदास रहोगे गर तुम सच्चे हो

बाक़ी हर जज़्बा-ए-मश्क़ फ़नकारी है

अंदर अंदर दर-ब-दरी ही दर-ब-दरी

बाहर बाहर ख़ूब दर-ओ-दीवारी है

जिस्म बहुत भारी हैं शहर के लोगों के

जिस्मों में दिल हैं तो और भी भारी हैं

दरिया में साहिल हैं दख़्ल-अंदाज़ बहुत

दरिया बेचारा क्या है बस जारी है

मैं तो अपने आप से आरी हूँ कब से

फिर ये किस के होने की तय्यारी है

शेर में एक ज़रा सा होता है इल्हाम

उस के बा'द तो जो कुछ है फ़नकारी है

फ़नकारी तो ऐरे-ग़ैरे भी कर लें

असलन तो इल्हाम में ही दुश्वारी है

जिस्म उड़ा फिरता है वही बाज़ारों में

रूह वही मसरूफ़-ए-ख़ाना-दारी है

चेहरा अभी तक है ख़ाना-आबाद मिरा

उस के मुक़ाबिल आईना-बाज़ारी है

कासा-ए-जिस्म बना बैठा है जब देखो

ये फ़रहत-एहसास अजीब भिकारी है

(1345) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai In Hindi By Famous Poet Farhat Ehsas. Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai is written by Farhat Ehsas. Complete Poem Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai in Hindi by Farhat Ehsas. Download free Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai Poem for Youth in PDF. Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Maut Hi Ek Dawa Hai Aur Wo Jari Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.