रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

मैं जिस्म-ए-कलाम कर रहा हूँ

मेरी है जो ख़ास अपनी मिट्टी

उस ख़ास को आम कर रहा हूँ

इक मुश्किल सख़्त आ पड़ी है

इक सुब्ह को शाम कर रहा हूँ

दुनिया से कहो ज़रा सा ठहरे

इस वक़्त आराम कर रहा हूँ

चुप चाप पड़ा हुआ हूँ घर में

और शहर में नाम कर रहा हूँ

मिट्टी को पलट रहा हूँ अपनी

पुख़्ता को ख़ाम कर रहा हूँ

क्या काम है जानना है मुझ को

इक सिर्फ़ ये काम कर रहा हूँ

बे-रब्ती-ए-जिस्म-ओ-जाँ फ़ुज़ूँ-तर

तौहीन-ए-निज़ाम कर रहा हूँ

ख़ुश्बू-ए-ख़ुदा लगा के ख़ुद पर

मज़हब को हराम कर रहा हूँ

ईमान ने कुछ सुनी न मेरी

सो कुफ़्र पे काम कर रहा हूँ

अल्लाह-मियाँ के मशवरे से

तर्क-ए-इस्लाम कर रहा हूँ

ऐ ज़िंदाबाद फ़रहत-एहसास

मैं तुझ को सलाम कर रहा हूँ

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Raqs-e-ilham Kar Raha Hun In Hindi By Famous Poet Farhat Ehsas. Raqs-e-ilham Kar Raha Hun is written by Farhat Ehsas. Complete Poem Raqs-e-ilham Kar Raha Hun in Hindi by Farhat Ehsas. Download free Raqs-e-ilham Kar Raha Hun Poem for Youth in PDF. Raqs-e-ilham Kar Raha Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Raqs-e-ilham Kar Raha Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.