हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
इधर से रावी चला उधर से चनाब तय्यार हो रहा है
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हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम
आँख भर देख लो ये वीराना
नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है
साँसें ना-हमवार मिरी
मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे
साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे
मैं बिछड़ों को मिलाने जा रहा हूँ
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर
जिस्म के पार वो दिया सा है
वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं