हमें जब अपना तआ'रुफ़ कराना पड़ता है
न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है
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हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है
यही हिसाब-ए-मोहब्बत दोबारा कर के लाओ
मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे
लहर का ठहराओ
मेरी कोई तारीफ़ नहीं है मैं वक़्फ़ों वक़्फ़ों में हूँ
औरों का सारा काम मुझे दे दिया गया
काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई
बे-बदन रूह बने फिरते रहोगे कब तक
कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
पीला कुत्ता