हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है
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बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़र
रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
एक बार उस ने बुलाया था तो मसरूफ़ था मैं
रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़
किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया
पीला कुत्ता
ईमाँ का लुत्फ़ पहलू-ए-तश्कीक में मिला
सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है
वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा
बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला
ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया