जान ये सरकशी-ए-जिस्म तिरे बस की नहीं
मेरी आग़ोश में आ ला ये मुसीबत मुझे दे
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जिस तरह पैदा हुए उस से जुदा पैदा करो
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे
उस तरफ़ तू तिरी यकताई है
मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं
ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ
मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता
हमवारी
सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है