तभी वहीं मुझे उस की हँसी सुनाई पड़ी
मैं उस की याद में पलकें भिगोने वाला था
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रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़
बादल इस बार जो उस शहर पे छाए हुए हैं
तुम नहीं माने
मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
इश्क़ में पीने का पानी बस आँख का पानी
दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है
क़िस्सा-ए-आदम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है
कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते
उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में