तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता
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नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे
ज़ख़्म
बचा के लाएँ किसी भी यतीम बच्चे को
रात हुई
पीला कुत्ता
आ मुझे छू के हरा रंग बिछा दे मुझ पर
ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा
तहरीर की फ़ुर्सत
इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
ये तेरा मेरा झगड़ा है दुनिया को बीच में क्यूँ डालें
ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ