ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया
बहे चले गए सब लोग इस रवानी में
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
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क्या बदन है कि ठहरता ही नहीं आँखों में
जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से
रास्ते हम से राज़ कहने लगे
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं
कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना
तहरीर की फ़ुर्सत
चाकरी में रह के इस दुनिया की मोहमल हो गए थे
लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम
सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं
नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे