ये धड़कता हुआ दिल उस के हवाले कर दूँ
एक भी शख़्स अगर शहर में ज़िंदा मिल जाए
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हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़
इक हवा आई है दीवार में दर करने को
हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब
हमारा ज़िंदा रहना और मरना एक जैसा है
रूह को तो इक ज़रा सी रौशनी दरकार है
लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम
साँप
साँसें ना-हमवार मिरी
मामूल
बन न पाया हीर, राँझा अब भी राँझा है बहुत