कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल
कितनी ख़ामोशी से दरवाज़ा खुला था पहले
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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Gulzar
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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मिल रही है मुझे ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा
बग़ैर नक़्शे के सारे मकान लगते हैं
समुंदर सर पटक कर मर रहा था
उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले
मिरे घर की ईंटें चुरा ले गया वो
इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी
एयर-होस्टेस
लिहाफ़
किस अनमोल पशेमानी की दौलत है इन आँखों में
अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
वाईपर
मिरा रोता बच्चा बहलता था जिस से