सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो
बहार बन के कोई अब तो हम-सफ़र आए
Gulzar
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बग़ैर सम्त के चलना भी काम आ ही गया
एक आँसू याद का टपका तो दरिया बन गया
शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं
न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा
किन शहीदों के लहू के ये फ़रोज़ाँ हैं चराग़
न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी
आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में
एक परछाईं तसव्वुर की मिरे साथ रहे
शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है
दिल का हर ज़ख़्म तिरी याद का इक फूल बने