चलूँ तो मस्लहत ये कह के पाँव थाम लेती है
वहाँ जाना भी क्या हासिल जहाँ से कुछ नहीं होता
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
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उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
अक्स-ए-रौशन तिरा आईना-ए-जाँ में रक्खा
उक़ाबी रूह
तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है
हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है
दिए से यूँ दिया जलता रहेगा
आँधी में बिसात उलट गई है
मोहब्बत के सिवा हर्फ़-ओ-बयाँ से कुछ नहीं होता
रज़ा
रंग-ओ-बू का शौक़ आशोब-ए-हवा में ले गया
कौन पस-ए-मंज़र में उजड़े पैकरों को देखता
कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं