भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2166) Peoples Rate This
गिरहें
नज़्म
किताबें
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
दर्द हल्का है साँस भारी है
शहतूत की शाख़ पे
आदत
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
चम्पई धूप
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते