हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
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हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं
जब भी आँखों में अश्क भर आए
राख को भी कुरेद कर देखो
एक ख़्वाब
सीलन
जब भी ये दिल उदास होता है
वो एक दिन एक अजनबी को
शाम से आँख में नमी सी है
मैं काएनात में