हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
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उर्दू ज़बाँ
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
इमेजेज़
धूप लगे आकाश पे जब
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दर्द हल्का है साँस भारी है
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
कंधे झुक जाते हैं
लिबास
राख को भी कुरेद कर देखो