कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
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एक ख़्वाब
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
शाम से आँख में नमी सी है
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
आप ने औरों से कहा सब कुछ
कोई अटका हुआ है पल शायद
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
फिर वहीं लौट के जाना होगा