वो एक दिन एक अजनबी को
मिरी कहानी सुना रहा था
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कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
हिरासत
दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
दस्तक
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
सब्र हर बार इख़्तियार किया
एक ख़्वाब
अकेले
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए