वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
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ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
सबात
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
शाम से आँख में नमी सी है
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
दर्द हल्का है साँस भारी है
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
शाख़ें