ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवा-डोल कभी
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ख़ुदा
वो एक दिन एक अजनबी को
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ
दर्द हल्का है साँस भारी है
ख़ुद-कुशी
तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए
शफ़क़
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़