ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए
किताबें
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
बीते रिश्ते तलाश करती है
ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें
कोई अटका हुआ है पल शायद
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से
तख़्लीक़