ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
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आदतन तुम ने कर दिए वादे
गिरहें
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
ख़ाना-ब-दोश
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
आप ने औरों से कहा सब कुछ
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए
देर से गूँजते हैं सन्नाटे