जिन का यक़ीन राह-ए-सुकूँ की असास है
वो भी गुमान-ए-दश्त में मुझ को फँसे लगे
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एहसास-ए-ना-रसाई से जिस दम उदास था
रेत पर जलते हुए देख सराबों के चराग़
किस के ख़याल ने मुझे शोरीदा कर दिया
आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता
उस के गुलाबी होंट तो रस में बसे लगे
महफ़िल में फूल ख़ुशियों के जो बाँटता रहा
आइए आसमाँ की ओर चलें
साँप का साया ख़्वाब मेरे डस जाता है
गर्दिश की रक़ाबत से झगड़े के लिए था
रिश्ते नाते टूटे फूटे लगे हैं
पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया