हक़ अच्छा पर उस के लिए कोई और मिरे तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पे चढ़ो ख़ामोश रहो
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2330) Peoples Rate This
इक साल गया इक साल नया है आने को
जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो
एक बार कहो तुम मेरी हो
बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
'मीर' से बैअत की है तो 'इंशा' मीर की बैअत भी है ज़रूर
दिल-आशोब
ये बच्चा किस का बच्चा है