हुस्न बना जब बहती गंगा
इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
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डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ
ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से
बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है
ज़ेहन से दिल का बार उतरा है
देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई
आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान
दिल सा खिलौना हाथ आया है
अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवल
लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
दिन के भूले को रात डसती है