फेंक दे बाहर की जानिब अपने अंदर की घुटन
अपनी आँखों को लगा दे घर की हर खिड़की के साथ
Rahat Indori
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रात भर कोई न दरवाज़ा खुला
ख़ुदा जाने गिरेबाँ किस के हैं और हाथ किस के हैं
ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ
अब इतनी ज़ोर से हर घर पे दस्तकें देना
दोस्तों के हू-ब-हू पैकर का अंदाज़ा लगा
अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती
मिरी ख़्वाहिश है दुनिया को भी अपने साथ ले आऊँ
ख़्वाहिशों के पेड़ से गिरते हुए पत्ते न चुन
ज़मीं मदार से अपने अगर निकल जाए