जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
चिड़िया के बच्चे
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
बरसात
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़