हमारी गाय
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
रात
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम