साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ये रंग ये झुट-पुटा ये ख़ुनकी ये सुरूर
ये रक़्स-ए-हयात और दरिया के उधर
टूटी हुई क़ब्रों पे सितारों का ये नूर
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ज़ब्त-ए-गिर्या
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं