खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
ग़म ख़ुद ले जाए शादमानी की तरफ़
तेरा जो करम हो तो मिसाल-ए-मह-ए-नौ
पीरी से पहुँच जाऊँ जवानी की तरफ़
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आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
बादल आ के रो गए हाए ग़ज़ब
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है