जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
हम ने नहीं रुत्बा ये किसी का देखा
कहते हैं नबी जब हुई मेराज मुझे
पहुँचा जो वहाँ हाथ अली का देखा
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दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए