रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
वो दिल में फ़रौतनी को जा देता है
करते हैं तही-मग़्ज़ सना आप-अपनी
जो ज़र्फ़ कि ख़ाली है सदा देता है
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अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है