सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
हर एक से झुक क़ौस-ए-ख़मीदा की तरह
मंज़ूर-ए-नज़र है जो हिफ़ाज़त अपनी
हो गोशा-नशीं मर्दुम-ए-दीदा की तरह
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1430) Peoples Rate This
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
दुश्मन को भी दे ख़ुदा न औलाद का दाग़
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा