अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
इस तरह का बंदा तो हक़ीक़त में नहीं
तूबा तसनीम-ओ-ख़ुल्द-ओ-सेब-ओ-रुम्मान
वो क्या है जो हैदर की विलायत में नहीं
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हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं