अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
तौफ़ीक़ रफ़ीक़ हो तो चलता हूँ मैं
तक़दीर ने बेड़ियाँ तो काटी हैं 'अनीस'
क्यूँ रुक गए पाँव हाथ मलता हूँ मैं
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ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
दुख में हर शब कराहता हूँ या-रब
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ