अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
ले ज़ाद-ए-सफ़र कूच की तय्यारी है
मर मर के पहुँचते हैं मुसाफ़िर वाँ तक
ये क़ब्र की मंज़िल भी ग़ज़ब की भारी है
Habib Jalib
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थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो