अब वक़्त-ए-सुरूर ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
हर दिल मसरूफ़-ए-जश्न-ए-नौ-रोज़ी है
है आज से दौर-ए-शाही शाह-ए-नजफ़
ये रंग-ए-बहार फ़तह-ओ-फ़ीरोज़ी है
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खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें