अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
हुशियार हो जल्द वक़्त-ए-ख्वाब आ पहुँचा
पीरी की भी दोपहर ढली आह 'अनीस'
हंगाम-ए-ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब आ पहुँचा
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असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू