पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
आँखें जिसे ढूँढती हैं वो नूर है तू
क़ुर्बत रग-ए-जाँ से और फिर इस पर ये बोद
अल्लाह अल्लाह किस क़दर दूर है तू
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किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा