असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
मेराज में हज़रत ने किसी को देखा
कहने लगे मुस्कुरा के महबूब-ए-ख़ुदा
वल्लाह जहाँ देखा अली को देखा
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बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली