बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
परदेस में मादर का रँडापा देखा
ज़िंदाँ में जफ़ा-ए-ख़ार-ओ-तौक़-ओ-ज़ंजीर
आबिद ने पिदर के बअ'द क्या क्या देखा
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
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अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा