अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
दरबार-ए-हुसैनी में है राह-ए-ज़ाकिर
पंजा जो अलम का सर-ए-मिंबर है अनीस
है दस्त-ए-अलम-दार पनाह-ए-ज़ाकिर
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दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
उल्फ़त हो जिसे उसे वली कहते हैं