उल्फ़त हो जिसे इसे वली कहते हैं
ऐसों को सईद-ए-अज़ली कहते हैं
इस बज़्म में धूप उठा के आते हैं जो लोग
हँस कर तूबा-लकुम अली कहते हैं
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1504) Peoples Rate This
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर