ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
कल जाएगा भूका प्यासा मारा शब्बीर
हो जाएँगे सब ता'ज़िया ख़ाने सुनसान
आज और है मेहमान तुम्हारा शब्बीर
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खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़